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महापालिका ने आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को लागू करना शुरू कर दिया है, जिसमें 240 दिन पूरे करने पर कामगारो को कायम कर्मचारी के रूप में बनाए रखना अनिवार्य किया गया है।
यदि कॉन्ट्रॅक्ट लेबर लगातार 240 दिन पूरे कर लेते हैं, तो श्रम अधिनियम के अनुसार कामगारो को स्थायी रूप से नियोजित करना अनिवार्य है। कचरा परिवहन श्रमिक संघ ने 2,700 ऐसे श्रमिकों के स्थायी रोजगार की मांग को लेकर 2007 से अदालती लड़ाई शुरू की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में आदेश दिया था कि 2,700 कर्मचारियों को मुंबई महानगर पालिका की सेवा में समाहित किया जाना चाहिए। मुंबई महापालिका ने उस फैसले को पूरी तरह से लागू नहीं किया है. इसलिए, कचरा परिवहन श्रमिक संघ ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के छह साल बाद भी 135 मृत और सेवानिवृत्त कर्मियों के परिवारों में से एक को भी अनुकंपा पर रोजगार, उनकी ग्रेच्युटी, पेंशन नहीं मिली है. इसलिए कचरा मजदूर संघ ने यह लड़ाई जारी रखी. संगठन के महासचिव मिलिंद रानाडे ने आरोप लगाया है कि 2017 में इस मामले में फैसला आने के बावजूद ही महापालिका प्रशासन ने पिछले छह वर्षों में केवल अदालत को टाला और उसकी अवमानना की है.
यह संगठन पिछले वर्ष 2023 में कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की गई थी.
उस समय इस मामले में अंमलबजावणी नहीं करणे वाले अधिकारियों के नाम प्रस्तुत करने के निर्देश कोर्ट ने दिसंबर 2023 में नगर पालिका को दे दिया था.
लेकिन नगर पालिका इस पर अमलबजावणी नही किया. इसलिए कोर्ट की अवमानना है प्रतिबद्ध होने की स्थिति में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के निर्देश मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट आयुक्त को दिया गया। इसलिए पूर्व महानगर पालिका कमिश्नर इकबाल सिंह चहल कोर्ट में पेश होना पड़ा. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अभी भी सुनवाई जारी है.
30 अप्रैल तक रिपोर्ट सादर करणे का आदेश कोर्ट ने महापालिका प्रशासन को दे दिया हे.
महानगर पालिका के विभाग ने उन श्रमिकों के नाम जारी किए हैं जिनसे संपर्क नहीं हो सकता। साथ ही बैंक की जानकारी नहीं देने वाले कर्मियों के नाम की भी घोषणा की गयी है. महानगर पालिका प्रशासन ने यह भी अपील की है कि जून महिना मे महानगरपालिका प्रशासन द्वारा आयोजित शिबीर में इन श्रमिकों के साथ-साथ मृत श्रमिकों के परिवार भी भाग लें.